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छोटा ही सही, एक हॉलिडे तो बनता ही है!

12 mins. read

Published in the Sunday Navbharat Times on 10 August 2025

...इसलिए मैंने उसे चालू ही नहीं किया। उन शांत पलों में मुझे एहसास

हुआ कि विश्रान्ति भरा एक दिन कितना शक्तिशाली हो सकता है...

जब मैं ये आलेख लिख रही हूँ, तो मैं बार-बार ऊपर देखती हूँ और ऐसा महसूस करती हूँ, जैसे मैं अपने हाथ बढ़ाकर इन पहाड़ों को छू सकती हूँ, क्योंकि वे मुझे इतने पास लगते हैं। मैं अपने कमरे से सटी बालकनी में बैठी हूँ, जहाँ ज़िगज़ैग शेवरॉन पैटर्न वाली टाइलें लगी हैं, एक बबलिंग जकूज़ी है, और यकीन मानिए, इसी बालकनी में एक ़फाउंटेन भी है, जिसे मैं निहार रही हूँ। ये सब मुझे अपने अपने छोटे से प्राइवेट कोर्टयार्ड जैसा लग रहा है।

कमरे का फोर-पोस्टर बेड और लटके हुए पर्दे शाम की हल्की हवा में धीरे-धीरे हिल रहे हैं। मेरे आसपास के मेहराब किसी और ज़माने की फुसफुसाहट जैसे लगते हैं, जिनको बड़ी खूबसूरती से डिज़ाइन किया गया है और बड़े ही आकर्षक लग रहे हैं। मेरी माँ मेरी बगल में ही बैठी हैं और दिन भर की तस्वीरें देख रही हैं। उनके चेहरे पर एक शांत मुस्कान बिखरी है। ये शांति कभी-कभार मोर की सुरीली आवाज़ से भंग सी हो जाती है। उस पल मुझे वो असीम शांति महसूस हुई, जो बहुत समय से नहीं हुई थी।

उस दोपहरी में मैंने इतनी गहरी नींद ली थी, कि मुझे याद ही नहीं आ रहा था कि आखिरी बार मैं कब इस तरह से सोई थी, कम से कम दिन में तो बिल्कुल भी नहीं। दोपहर की झपकी ऐसा चैन देने वाला आराम प्रदान करती है जो समय को धुंधला कर देता है और आत्मा को फिर से तरोताज़ा कर देता है। और फिर मेरे मन में खयाल आया कि छुट्‌‍टियों का असली मतलब यही तो होता है।

एक पवित्र विश्रांति

हॉलिडे शब्द की शुरुआत दरअसल ‌‘होली डे‌’ यानी पवित्र दिन से हुई थी, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी की आपाधापी से एक पवित्र विश्रांति है। हालाँकि गुजश्ता सदियों में इसका अर्थ बदलता रहा है, लेकिन ले-देकर इसका सार वही है: और भी ज़्यादा खुलकर जीने, खुशी को फिर से गले लगाने और अलग-अलग जगहों, लोगों और खुद से जुड़ने का वक्त।

चाहे वो गीज़ा के शानदार पिरामिडों को देखना हो, सेंटोरिनी के गुंबदों के पीछे डूबते सूरज को निहारना हो, या मुन्नार की धुंध भरी सुबह में चाय की चुस्कियाँ लेना हो... चाहे प्राचीन एथेंस के खंडहरों के बीच टहलना हो या जयपुर की गुलाबी गलियों में आनंद से खो जाना हो, हमारी हर यात्रा हमें रुकने का एक अद्भुत मौका, एक विश्रांति देती है।

इस बार, मुझे एक वर्क ईवेंट के सिलसिले में एक ब्रेक मिला था, और मौका था जयपुर में होने वाले सालाना ऑस्ट्रेलिया टूरिज़म ईवेन्ट के दौरान ऑस्ट्रेलिया के लिए वीज़ा एडवाइज़री मीटिंग। लेकिन जैसे ही मुझे इसका इंविटेशन मिला, मेरे मन में एक विचार आया - क्यों न इसे एक छोटेसे वीकेन्ड गेटअवे में बदल दिया जाए?

और बस इस तरह मैंने जयपुर के लिए एक थ्री डे एस्केप को बुक कर लिया, अपनी यात्राओं की मेरी पसंदीदा साथी, मेरी माँ के साथ।

माँ के साथ ट्रैवलिंग: खो चुके समय की भरपाई

मेरी माँ, जो अब सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में हैं, वो दिल से एक घुमंतू हैं। उन्होंने वीणा वर्ल्ड के साथ दुनिया में बहुत कुछ देखा है और वो अक्सर अकेली ही घूमने निकल जाती हैं, वो भी पूरे जोश के साथ। चूँकि मेरी अपनी यात्राएँ ज़्यादातर मेरे काम के सिलसिले में होती हैं, इसलिए हमें साथ में यात्रा करने का मौका कम ही मिलता है। इसलिए हमारी ये अचानक वाली यात्रा हमारे लिए एक गिफ़्ट की तरह लग रही थी, जो हमें एक दूसरे के साथ फिर से जुड़ने और हमारे रिश्ते का जश्न मनाने का एक अवसर था।

भारत में घूमना-फिरना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है। अच्छे फ़्लाइट कनेक्शनों और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ छोटी-छोटी छुट्‌‍टियाँ अब बेहद आसान लगती हैं। और भारत में, जहाँ ज़्यादातर लोग घूमने के लिए सर्दियों का इंतज़ार करते हैं, वहीं मैंने देखा है कि मानसून अपने साथ एक अलग ही तरह का जादू लेकर आता है।

मैंने कुर्ग में बादलों के बीच चहल-कदमी की है, बारिश से धुले हम्पी में प्राचीन मंदिरों को देखा है और यहाँ तक कि हरे-भरे ऋषिकेश में वेलनेस रिट्रीट्‌‍स का भी मज़ा लिया है। एक अच्छे रेन जैकेट के साथ मानसून ट्रैवल न केवल मुमकिन होता है, बल्कि ये हमारे लिए बेहद फायदेमंद भी होता है। उदाहरण के लिए गोवा को ही लें, जो साल भर आत्मीयता से भरा रहता है, खासकर जब आप वहाँ के स्थानीय लोगों के ‌‘सुशेगाद‌’ माइंडसेट को गले लगाते हैं और धूसर आकाश के नीचे से समुद्र का खूबसूरत नज़ारा देखते हैं।

जयपुर में धूप का एहसास

हालाँकि जयपुर में लगातार बारिश हो रही थी, लेकिन जैसे ही मैंने लैंड किया, वहाँ का आसमान स़ाफ हो गया। ऐसा लगा जैसे हमारी यात्रा की सुखद शुरुआत के लिए बिलकुल सही समय पर धूप खिल आई हो। 'राजस्थान में वाकई बारिश की बहुत ज़रूरत है' हमारे ड्राइवर ने कहा। 'जब यहाँ बारिश होती है तो स्थानीय लोग हमेशा ऊपर वाले के आभारी होते हैं।'

चूँकि मैं और मेरी माँ दोनों पहले भी जयपुर आ चुके थे, इसलिए मैंने इस ट्रिप की प्लानिंग कुछ अलग तरह से की थी। और हमारी लिस्ट में सबसे पहले था...

तोरण गेट: जयपुर का ग्रैंड वेलकम

हमारा पहला पड़ाव तोरण गेट था, जो शहर में एक भव्य प्रवेश द्वार के रूप में बनाया गया है और यह एक अपेक्षाकृत नया आकर्षण है, जो विशेष रूप से एयरपोर्ट साइड से आने वाले यात्रियों के लिए है। पारंपरिक राजस्थानी शैली से प्रेरित तोरणों (सजावटी मेहराबों) से सजी यह इमारत भव्यता और कलात्मकता का संगम है, जो जीवंत रूपांकनों और शास्त्रीय स्थापत्य कला के साथ आगंतुकों का स्वागत करती है।

पत्रिका गेट: एक इंस्टाग्राम आइकन, रॉयल सोल के साथ

इसके बाद हम पत्रिका गेट पहुँचे, जो जवाहर सर्कल गार्डन में स्थित एक मनमोहक, बहुरंगी प्रवेश द्वार है। इसे पत्रिका समूह द्वारा सन 2016 में, राजस्थान की स्थापत्य विरासत के उत्सव के रूप में बनाया गया था। 30 फीट ऊँचे इस द्वार पर हाथ से चित्रित भित्तिचित्र हैं, जो हर राजस्थानी जिले की अनूठी संस्कृति, परंपराओं और ऐतिहासिक स्थलों को दर्शाते हैं।

हालाँकि अब यह इंस्टाग्राम फेवरेट बन गया है (और अब ये प्री-वेडिंग शूट्‌‍स के लिए भी एक हॉटस्पॉट है), मैंने कुछ देर रुककर इसके रंगों और बारीकियों को अपनी आँखों से निहारा। मेरे पास एक स्थानीय ़फोटोग्राफर आया और उसने मुझे तुरंत एयरड्रॉप डिलीवरी के साथ बेहतरीन तस्वीरें और वीडियो भेजने का वादा किया। मैंने बिना सोचे- समझे हामी भर दी - कुछ तो इसलिए क्योंकि मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया था, और कुछ इसलिए, क्योंकि उसका उत्साह एक आत्मविश्वासी, डिजिटल-फर्स्ट इंडिया की भावना को बयां कर रहा था।

उसने मुझे पोज़ बनाने में मदद की, मुझे एक 'मॉडल' की तरह चलना सिखाया और जब मैं अजीब तरह से, लेकिन खुशी-खुशी इन सब चीज़ों में पार्टिसिपेट कर रही थी, तब उसने मेरी कुछ तस्वीरें लीं। मेरी माँ, जो आम तौर पर फोटो खिंचवाने से कतराती थीं, आखिरकार वो भी मेरे साथ इसमें शामिल होने के लिए राज़ी हो गईं। जब वो तस्वीरें मेरे ़फोन पर आईं, तो मैं सचमुच हैरान रह गई। वे बड़ी ही स्वाभाविक, गर्मजोशी से भरी और भावनाओं से ओतप्रोत थीं। ऐसी तस्वीरों को आप अक्सर फ्रेम में रखना चाहते हैं।

उस ़फोटोग्राफर के नन्हे असिस्टेंट 'लकी' ने इस बात का ध्यान रखा कि दूसरे लोग हमारी तस्वीरों में ना आएँ। केवल इतना ही नहीं, उसने एक छोटा सा जादू का करतब दिखाकर हमारा मनोरंजन भी किया। ये हमारी जयपुर यात्रा की एक अनोखी और यादगार शुरुआत थी, वो भी तब, जब हमने चेक-इन भी नहीं किया था!

सामोद पैलेस: समय में एक कदम पीछे

शहर से गुज़रते हुए हम सामोद महल पहुँचे, जो जयपुर से 42 कि.मी. दूर स्थित है। अरावली की तलहटी में बसा ये 475 साल पुराना महल इंडो-सारसेनिक आर्किटेक्चर का एक अनमोल खज़ाना है। मूल रूप से इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में रावल शिव सिंह द्वारा किया गया था। जयपुर राजघराने के एक कुलीन व्यक्ति श्री शिव सिंह द्वारा बनवाए गए इस महल को अब एक लक्जरी हेरिटेज होटल के रूप में पुनः स्थापित किया गया है।

इसकी भित्ती-चित्रों से सजी दीवारें, मिररवर्क वाले हॉल, और विशाल कोर्टयार्ड हमारे कानों में किसी और युग की कथाएँ फुसफुसाकर सुनाते लगते हैं।

सामोद पैलेस में अपने कमरे की बालकनी में बैठकर हरे-भरे पहाड़ों को निहारते हुए मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरे लिए समय का रथ रुक सा गया है। वहाँ हवा शांत थी, वहाँ की नीरवता बिलकुल ध्यान जैसी थी। कमरे में लगा टीवी भी मुझे दखलंदाज़ी जैसा लग रहा था, इसलिए मैंने उसे चालू ही नहीं किया। उन शांत पलों में मुझे एहसास हुआ कि विश्रांति भरा एक दिन कितना शक्तिशाली हो सकता है।

कुछ कम करने का आनंद

जब हम मानसून में यात्रा करते हैं तो अक्सर हमें टूरिस्टों की भीड़ नहीं मिलती, कतारें उतनी लंबी नहीं होती और हमें अपने आस-पास के वातावरण के साथ आत्मीयता कुछ ज़्यादा महसूस होती है। इस मौसम में हवा बहुत सुहावनी होती है, हरियाली भरपूर होती है और हर स्मारक प्रकृति के ताज़ा रंगों में रंगा हुआ सा लगता है।

इस तरह के छोटे ब्रेक मुझे याद दिलाते हैं कि आप अपने लिए जो होटल चुनते हैं, अक्सर वही आपका डेस्टिनेशन बन जाता है। खास तौर पर बारिश में इन-हाउस एक्टिविटीज़ और खूबसूरत परिवेशवाला रिसॉर्ट बहुत मायने रखता है। पहली बार घूमने जाने पर, आपका मन कर सकता है कि आप पूरा दिन घूमने में बिता दें। लेकिन कभी-कभी, कम करने से ही हमें ज़्यादा अनुभव मिलता है। और बेहतरीन मानसून ऑफर्स के साथ मानसून में लक्ज़री वाकई बहुत क़िफायती भी हो जाती है!

छुट्‌‍टियाँ: आत्मा के लिए अनूठा उपचार

कैनेडा में कुछ डॉक्टर तनाव चिकित्सा के रूप में छुट्‌‍टियों की सलाह देने लगे हैं। कितनी दिलचस्प बात है ना? लेकिन यहाँ भारत में, जहाँ आध्यात्म, परंपरा और स्वास्थ्य पहले से ही आपस में गुंथे हुए हैं, हमें बस वो सुनने की ज़रूरत है, जो हमारा शरीर और हमारा मन हमें उस धीमी फुसफुसाहट के साथ कह रहा है - कि हमें एक ब्रेक लेना चाहिए।

अब कई सारे लाँग वीकेन्डस्‌‍ आने ही वाले हैं। तो चलिए, यकायक एक वीकेन्ड ऑ़फ पर चलें। किसी ऐसे व्यक्ति के साथ घूमें, जिसे आप दिल से चाहते हैं। उन जगहों पर जाएँ, जिन्हें आप बेशक पहले भी देख चुके हैं, पर उसी जगह को एक नई नज़र से देखें। बारिश का आनंद लें, अप्रत्याशित चीज़ों का मज़ा चखें और खुद को एक सच्ची विश्रांति दें। आखिरकार, भारत आपको बुला रहा है। क्या आप चलने के लिए तैयार हैं?

August 08, 2025

Author

Sunila Patil
Sunila Patil

Sunila Patil, the founder and Chief Product Officer at Veena World, holds a master's degree in physiotherapy. She proudly served as India's first and only Aussie Specialist Ambassador, bringing her extensive expertise to the realm of travel. With a remarkable journey, she has explored all seven continents, including Antarctica, spanning over 80 countries. Here's sharing the best moments from her extensive travels. Through her insightful writing, she gives readers a fascinating look into her experiences.

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